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SHRIMADBHAGAVADGEETA

VINOD KUMAR MISHRA

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27 March 2023 पर पूरा भेल
ISBN संख्या : 9789391371111
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गीताक संस्कृत अत्यंत सारगर्भित आ गंभीर छैक। युगानुयुग सँ विद्वद्गण, साधक, आ भक्तगण एकर सही अर्थक संधान मे बहुतो भाष्य, टीका, आ व्याख्याक रचना केने छथि। ओहि मे विचारभेदक आधार पर अध्यात्म आ धर्मक स्वतंत्र विचारधारा यथा अद्वैत, द्वैत, विशिष्टाद्वैत, आदिक अवधारणा भेल अछि। हमर जोर अहि अनुवाद मे ओहि सँ हटि कए भावार्थक स्पष्टता पर बेसी रहल अछि। अतः कतहु कतहु मूल श्लोकक शब्द प्रतिशब्दक अनुवाद खोजनिहार कए किछु निराशा भए सकैत छैन्ह। अहि प्रयास मे हमरा गीताक अर्थक किछु स्पष्टता सेहो भेटल। भक्तहृदय आ पूर्ण श्रद्धालुजन कए एकर प्रत्येक शब्द अपौरुषेय आ वेदवाक्य तुल्य लगैत अछि आ ओ कोनो प्रकारक प्रश्न चिह्न स्वीकार नहि करैत छथि। दोसर दिस ओहो छथि जे एकरा देश आ कालक अनुसार एक पुस्तक मात्र मानैत छथि आ एकर कोनो सिद्धांत आधुनिकताक कसौटी पर प्रमाणित नहि भेला पर स्वीकार नहि करताह। हमर विचार मे सत्य कतहु बीच मे अछि। जे विषयवस्तु ब्रह्मज्ञान आ धर्मक परिभाषा सँ सम्बद्ध अछि ओकरा तर्कोपरि मानब उचित कियैक तँ गीता प्रस्थानत्रयीक अंग अछि। किन्तु जखन ओहि सिद्धांतक समाज रचना आ व्यक्तिगत जीवन मे अवतारणाक बात अबैत अछि तखन ओकर उपयोगिता आ वर्त्तमान समाजक स्थिति अवश्य सोचबाक चाही। उदाहरणस्वरूप वर्त्तमान हिन्दू समाज मे वर्ण व्यवस्थाक आधुनिक परिवेश मे की औचित्य अछि ई गीताक परिप्रेक्ष्य मे विवेचनाक विषय हेबाक चाही। आशा करैत छी जे ई अनुवाद अहि दिशा मे रुचि आ जिज्ञासा आनबाक माध्यम बनत। — विनोद कुमार मिश्र (संयुक्त राज्य अमेरिका २०२२) Read more 

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