जखन कखनो कोनो नव नाटक लिखबाक विचार अबैत अछि, नाना तरहक प्रश्न मोन मे घुरियाए लगैए। नाटक किए लिखै छी? ककरा ले लिखै छी? जत’ सिनेमा, दूरदर्शन ओ मोबाइल सन उत्कृष्ट मनोरंजन केर साधन उपलब्ध छै ओत’ नाटक के देखत? किए देखत? मुदा तखनहि हमर रंगमंचीय अनुभव कहि उठैत अछि जे जाबत धरि सामाजिक सरोकार सँ जुड़ल विषय पर नाटक लिखाइत रहत समाज मे नाटक जीवित रहत। आ तेँ हमर अधिकतर नाटक सामाजिक समस्या पर आधारित रहैत अछि। जीवनक अधिकाशं अवधि महानगरे मे बीतल तथापि गाम ओ गामक समाज अपन सिनेहक बन्धन मे तेना के बन्हने रहल जे सदिखन गाम सँ जुड़ल रहलहुँ। गाम मे पसरल गरीबी, अशिक्षा, अन्धविश्वास, जातीय उन्माद, भ्रष्टाचार, शोषण ओ अत्याचार सदिखन मोन केँ आन्दोलित करैत रहैए। आ जखन गाम मे घटित कोनो घटना वा दुर्घटना सँ मोन अत्यधिक व्यथित भ’ जाइए तखन लेखनी सँ बहराइत अछि नब नाटक। “बटुआवाली मैयाँ” नाटकक प्रकाशनक बाद बहुत दिन धरि वैयक्तिक ओ पारिवारिक दायित्वक कारणे लेखनी ठमकल रहल। मुदा तीन बरखक बाद पुन: लेखनी सक्रिय भेल आ तकरे प्रतिफल थिक ई नाटक “कमलामे भसियाइत सीता”। अपने लोकनिक स्नेह ओ आशीर्वादक प्रतिफल थिक एहि नाटकक प्रकाशन जकरा अपन सुधी पाठक, रंगकर्मी ओ साहित्य प्रेमीक हाथ मे दैत परम हर्षक अनुभव क’ रहल छी। विशुद्ध ग्रामीण परिवेशक पृष्ठभूमि मे तैयार नाटक “कमलामे भसियाइत सीता” मे समाजक एक वर्ग विषेशक जीवन केँ रेखांकित करबाक प्रयास कएल अछि। कहाँ धरि सफल भेलहुँ से त’ अपने लोकनि बुझबै। हम त’ मात्र छोट छीन प्रयास कएल अछि। अरविन्द अक्कू Read more