‘डीह’ उपन्यासमे लेखिकाकेँ नायक छन्हि डीह स्वयं! आर खलपात्र छन्हि परिस्थिति! जौं डीह परक लोककेँ आधुनिक समयसँ डेग मिला क’ चलक होइन्ह त’ से विलग होमहि पड़तैन्ह। एकटा विस्तृत कालखंड के समेटने छैक डीह। आज़ादी के समयसँ आइ धरि जखन लोक बेगरता लेल कि सुविधा लेल घर छोडै़त जा रहलाह अछि ताधरि के कथा छैक। फेरो ओ घूरि फिरि डीहे पर अबैये आ कातर भ’ ओकर आर्त्त आवाहन सुनबाक चेष्टा करैये। मुदा से संभव कहाँ कि सब छोड़ि आबि जाय! डीह पर रहयबला लोक लेल समाज ठमकल छै जेना। आर से मैथिल समाजक विडम्बना छैक। डीहक कथा मात्र धानक गम्हराक सुगंध कि पाकल कटहरक गमक के नहि भ’ सामाजिक सांस्कृतिक आ राजनीतिक विपर्यय के सेहो छैक। जाइत-जाइत बर्तानी सरकारकेँ कारिंदा गामेगाम अदंक पसारने गेलै। ककरो मनोबल तोड़बाक सबसँ निर्घिन आ चालू तरीका आइ धरि छैक स्त्री संग बलात्कार। ताहि समय के डीहक त्रास सरिपहुँ रोइयाँ ठाढ़ करय बला छैक। एहिमे छैक विधवा स्त्री आ ओकर प्रेमी पुरुषकेँ अंतर्कथा। स्त्री आ पुरुष दुनूमे यौनिकता होएब सहज छै तखन विधवा स्त्री पर लगाओल वर्जना कठोर अनुशासन भ’ सकैत छै जे स्वाभाविक त’ नहिये छै। लेखिका ओइ सब प्रश्नसँ स्वयँ रूबरू होइ छथि आ पाठक सोझा परसि दैत छथि। कथाक प्रवाह तीव्र छैक। हमर अशेष शुभकामना आ बधाई! — डाॅ. उषाकिरण खान Read more