नारायणजी मैथिलीक महत्वपूर्ण कवि छथि। 'कोनो टूटल अछि तन्तु' हिनक पाँचम कविता संग्रह थिक। ई मनुष्यताक क्षरणकेँ अपन कविताक मुख्य विषय बनौने छथि। हिनक कवितामे हर्ष-विषाद, सुख-दुख आ आशा-निराशाक बीच करुणासँ भिजैत मनुष्यक दर्शन होइत अछि। हिनक कवितामे प्रकृति ओहि वास्तविकताक संग अबैत अछि जे सृष्टिक उद्गम दिस संकेत करैत अछि। हिनक कवितामे पाथर जखन अबैत अछि, तखन ओ पाथर नहि रहि समयकेँ भोगैत सम्पूर्ण मनुष्य रूपमे देखाइत अछि, जे खाहे तँ समय पर व्यंग्य करैत अछि अथवा समयक गतिविधिमे मिजहर भेटैत अछि। नारायणजीक सभ कविता अपन भाषाक स्वयं आविष्कार करैत अछि। जे 'कोनो टूटल अछि तन्तु' (कविता-संग्रह)मे आर बेसी निखरि सोझाँ आएल अछि। Read more