श्रीमधुपजी स्वभावत: कवि हैं। कविता की रचना इनका स्वभाव हो गया है और अब तो इसे इनका व्यवसाय कहें तो भी अत्युक्ति नही। सहजात कवित्व-प्रतिभा को पुष्ट कर इन्होंने इतनी रचनाएँ की हैं कि वर्तमान कवि-मंडली में परिमाण में भी सब से उत्कृष्ट इनकी कृतियाँ ही कही जाएँगी। इस पुस्तक के अनुवादक आयुष्मान शंकर ‘मधुपांश’, कवि के ज्येष्ठ पुत्र स्व. तारा कांत मिश्र के प्रथम पुत्र हैं, ‘मधुप’ के सब से ज्येष्ठ पौत्र हैं। ‘कविचूड़ामणि’ की गोद मेंं लालित-पालित इन्हें मधुपजी की उंगली पकड़ कर चलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मधुप का अजस्र स्नेह, सत्संग, आरम्भिक शिक्षा-दीक्षा इनके विकास में अत्यधिक सहायक हुआ है। कविता लिखने की, उसमें रम जाने की प्रवृत्ति इनको अपने पितामह से मिले विशेष आशीर्वाद का ही प्रतिफल माना जायेगा। अनुवादक ‘मधुपांश’ के इस प्रयास से मैं अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ। निश्चित रूप से परिश्रमपूर्वक इन्होंने इस कृति का अनुवाद सफलतापूर्वक राष्ट्रभाषा में किया है। मैं प्रसन्न हूँ इनके इस कार्य से, और इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ। विश्वास है कि विशाल राष्ट्रभाषा-प्रेमी समाज में इस पुस्तक का पूर्ण स्वागत होगा। —देवकांत मिश्र रिटा. एसोसिएट प्रोफेसर एच. पी. एस. कालेज, मधेपुर मधुबनी (बिहार) Read more