हमरा सभक सोझाँ ऋषि बशिष्ठ जीक नव रचना नाटक के रूपमे ‘सिया के सकल देखि’ आयल अछि । ई नाट्य रचना मिथिला समाजक गाम – गाम आयोजित रामलीला कम्पनीक आयोजन के बहन्नी निर्मित भेल अछि । गाममे महीना भरि आयोजित रामलीला के दौरान गामक बनैत – बिगडैत स्थिति – परिस्थिति के सुंदर नाटकीय ढंग स’ समायोजित कयल जेल अछि एहि नव कृति मे । नाट्य लेखनक कठिन प्रारूप यानी – ‘नाटक के भीतर नाटक’ युक्तिक अद्भुत सूत्र – संयोजनक परिणति अछि ‘सिया के सकल देखि’ । मास धरि चलैत ‘रामलीला’ टीममे की की घटैत अछि, गाममे कोनो – कोनो आयोजन होइत अछि, रामलीलाक सदस्यक बीच केहन बात – व्यवस्था बनैत अछि, गामक लोक आ रामलीला टीमक बीच कहेन संबंध स्थापित भ’ जाइत अछि, रामलीलाक संदर्भमे गामक विभिन्न अवस्थाक लोकक बीच कहेन कहेन चर्च – वर्च शुरू भ’ जाइत अछि, विशेष क’ महिला समुदायमे आदि – आदि परिस्थितिके बान्हबाक प्रयास कयल गेल अछि उक्त नाटकमे । नाटकमे कखनो रामलीलाक दृश्य उभरैत अछि त’ कखनो गामक दृश्य । सब दृश्य एक दोसर स’ तेनाने गुम्फित होइछ जे एक दोसरक पूरक भ’ जाइत अछि । यैह एहि नाटकक खासियत अछि । नाटक प्रेक्षक आ पाठक के कखनो रामलीलाक रामायणक रसास्वादन करबैत अछि त’ कखनो अपन गामक वर्तमान स्थितिक दर्शन करबैट अछि । सीताक दू रूप – एकटा जनकपुर धामक आ श्री रामक सीता दोसर गामक वर्तमान सीता; दुनू मानसिक सोच केँ अनुभव करबाक मौका दैत अछि ई नाटक ‘सिया के सकल देखि’। मैथिली रंगमंच लेल ‘सिया के सकल देखि’ नाटक बहुत पैघ आमद अछि । Read more