कथा लिखबाक क्रम मे ओकर शिल्प आ शैली पर विशेष ध्यान एहि बातक राखल जे आकार छोट रहैक। यथासम्भव संवाद द्वारा सबटा बात केँ फरिछा देल जाइक। कथा मे बेसी उतार-चढ़ाओ नहि होइक मुदा परिदृश्य एहेन रहैक जाहि सँ एकर अन्त बुझबाक लेल पाठकक जिज्ञासा बनल रहैक... आ संगहि कथाक समाप्ति ओहि विशेष विन्दु पर कएल जाए जतए लोकक ध्यानाकर्षण अपेक्षित हो। जाहि सँ ओ समस्या अथवा विसंगति अपन स्पष्ट रूप मे पढनिहारक सोझाँ प्रकट भए जाइ। एहि संग्रहक कोनो कथा कोनो प्रकारक समाधान नहि प्रस्तुत करैत अछि। मुदा गप्पक गम्भीरता केँ रेखांकित करब अवश्ये प्रमुख उद्देश्य राखल गेल अछि। हमरा बुझने समस्याक कोनो प्रकारक निराकरण केर उपाय देब कथा लेखक केर काज थिकैको नहि! समाधान तँ व्यक्ति सापेक्ष होइत छैक आ दू भिन्न-भिन्न लोकक लेल एक्के टा समस्याक समाधान फराक-फराक भए सकैत छैक। तैँ एहि संग्रह केर कोनो कथा समाधानक सामान्यीकरण करैत नहि भेटत। हँ, पढलाक बाद जँ पाठक केँ कने ठमका दिअए, कने बिलमि केँ सोचबा पर विवश कए दिअए तँ ओकरा हम अपन लेखकीय सफलता बुझैत छी। एहि प्रकारक कथा सब केँ हम ‘मधुमाछी कथा’ कहैत छिऐक आ तैं ई पुस्तक भेल ‘मधुमाछी कथा संग्रह’… Read more