कविता : भाषा, भाव और व्याकरण की त्रिवेणी से अवतरित होती है जिसमें कालांतर में घटने वाले प्रकरण या व्यावहारिक सोच-विचारादि का बिम्बित होना स्वाभाविक है। मधुयामिनी काव्य में वर्तमान युगीन कवि के द्वारा रीतिकाल सदृश कल्पना की अभिव्यंजना एवम् भावाभिव्यंजना अचंभित करती है। कवि की कल्पनाशक्ति का स्तर स्तब्ध कर जाता है। प्रकृति के मानवीकरण का अनोखा उदाहरण जिसमें उपमा अपने चरम में परिलक्षित होती है। छायावाद के प्रमुख स्तंभ जयशंकर प्रसाद का स्मरण कराती काव्य शैली पाठक को विस्मित और पुलकित करेगी। प्रस्तुत पुस्तक शंकर मधुपांश की एक विलक्षण कृति है जिसमें भाषा और भाव का अनूठा संगम है। आज के युग में इस काव्य का अद्वितीय चरित्र इसे सहज ही महाकाव्य की गणना में आने का आमंत्रण देगा। हिन्दी साहित्य के क्षितिज पर मधुपांश जी के रूप में एक विलक्षण कवि का उदय असीम प्रसन्नता का अनुभव कराता है। इनकी सुखद और समृद्ध काव्ययात्रा के लिये मेरी मंगलकामनाएँ ! —विवेक प्रकाश सिंह Read more